Mahadev

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29 May 2022
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भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है। जिस तरह से ब्रह्मा जी इस सृष्टि के रचनाकार हैं और विष्णु जी पालक हैं ठीक इसी क्रम में भगवान शिव सृष्टि के संहारक हैं। उनका रहस-सहन, वेश-भूषा विचित्र है। कैलाश पर्वत में रहने वाले देवों के देव महादेव से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जिन्हें शायद ही आप जानते होंगे। आज हम यहां उन्हीं रहस्यों को बता रहे हैं। शिव का द्रोही मुझे स्वप्न में भी पसंद नहीं।'- भगवान राम 

आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है।

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। इस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया।

विष्णु ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना स्थान बनाया था। पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था। इन तीनों से सब कुछ हो गया।वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातनकाल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया।सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को 'आदिनाथ' भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस 'आदिश' शब्द से ही 'आदेश' शब्द बना है। नाथ साधु जब एक--दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश।महाभारत काल : ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल तक देवता धरती पर रहते थे। महाभारत के बाद सभी अपने-अपने धाम चले गए। कलयुग के प्रारंभ होने के बाद देवता बस विग्रह रूप में ही रह गए अत: उनके विग्रहों की पूजा की जाती है।

पहले शिव थे रुद्र : वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है।

देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।
 
नंबर-1 शिव ने क्यों मार दिए थे विशालकाय मानव...
 

ब्रह्मा ने बनाए विशालकाय मानव : सन् 2007 में नेशनल जिओग्राफी की टीम ने भारत और अन्य जगह पर 20 से 22 फिट मानव के कंकाल ढूंढ निकाले हैं। भारत में मिले कंकाल को कुछ लोग भीम पुत्र घटोत्कच और कुछ लोग बकासुर का कंकाल मानते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। पुराणों के अनुसार भारत में दैत्य, दानव, राक्षस और असुरों की जाति का अस्तित्व था, जो इतनी ही विशालकाय हुआ करती थी।

भारत में मिले इस कंकाल के साथ एक शिलालेख भी मिला है। यह उस काल की ब्राह्मी लिपि का शिलालेख है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली होते थे और पेड़ तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अंत में भगवान शंकर ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की शिव का धनुष पिनाक : शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।

देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।

शिव का चक्र : चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला।

त्रिशूल : इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है।
नंबर-3 शिव के गले में जो सांप है उसका नाम जानिए अगले पन्ने पर....

शिव का सेवक वासुकी : शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था। नागकुल के सभी लोग शैव धर्म का पालन करते थे। नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक। ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे सर्प और आधे मानव? हालांकि इन सभी को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है तो निश्‍चित ही ये मनुष्य नहीं होंगे।

नाग वंशावलियों में 'शेषनाग' को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही 'अनंत' नाम से भी जाना जाता है। ये भगवान विष्णु के सेवक थे। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव के सेवक बने। फिर तक्षक और पिंगला ने राज्य संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से 'तक्षक' कुल चलाया था। उक्त पांचों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश हुए जिनके भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।
नंबर-4 अगले पन्ने पर, जानिए अमरनाथ के अमृत वचन किस नाम से सुरक्षित...

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के '‍विज्ञान भैरव तंत्र' और 'शिव संहिता' में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- 'वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:' अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र
नंबर-5 अगले पन्ने पर शिव ने अपना ज्ञान सबसे पहले किसे दिया...

शिव के शिष्य : शिव तो जगत के गुरु हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले उन्होंने अपना ज्ञान सप्त ऋषियों को दिया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान लेकर अलग-अलग दिशाओं में फैलाया और दुनिया के कोने-कोने में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। इन सातों ऋषियों ने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं छोड़ा जिसको शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान नहीं सिखाया गया हो। आज सभी धर्मों में इसकी झलक देखने को मिल जाएगी। परशुराम और रावण भी शिव के शिष्य थे।

शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत ‍की थी
1. आदिनाथ शिव
सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

2 शिव के अस्त्र-शस्त्र
शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

3. भगवान शिव का नाग
शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

4. शिव की अर्द्धांगिनी
शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि कही गई हैं।

5. शिव के पुत्र
शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

6. शिव के शिष्य
शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

7. शिव के गण
शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

8. शिव पंचायत
भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

9. शिव के द्वारपाल
नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

10. शिव पार्षद
जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

11. सभी धर्मों का केंद्र शिव
शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।

12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय
ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव
भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

14. शिव चिह्न
वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

15. शिव की गुफा
शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

16. शिव के पैरों के निशान
श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : Social media
17. शिव के अवतार
वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

18. शिव का विरोधाभासिक परिवार
शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

19. कैलाश पर्वत
तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

20. शिव भक्त
ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

21. शिव ध्यान
शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

22. शिव मंत्र
दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

23. शिव व्रत और त्योहार
सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

24. शिव प्रचारक
भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

25. शिव महिमा 
शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

26. शैव परम्परा
दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

27. शिव के प्रमुख नाम
शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

28. अमरनाथ के अमृत वचन
शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

29. शिव ग्रंथ
वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

30. शिवलिंग
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

31. बारह ज्योतिर्लिंग 
सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

32. शिव का दर्शन
शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

33. शिव और शंकर
शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

34. देवों के देव महादेव
देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

35. शिव हर काल में
भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे।

 




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